उसके जाने के सदमे से उभर तो नहीं पायी थी पर अब अपने कभी भी आ जाने वाले आँसुओं पर थोड़ा काबू था...और होता भी कैसे नहीं, हमारे खानदान में बस शावर के नीचे तक ही प्राइवेसी सीमित हैं।
पर शायद उस सदमे से उभरती भी कैसे...?उसके यादों की बारात ने मेरे दिल के आँगन में मेरी डोली जो सजा रखी थी।
शाम का वक्त था...अचानक मौसम बिगड़ा और जोरों से आँधी आयी...
माँ सु-सटाक बोल पड़ी “अरे, जल्दी जा रे बाबा! छत से कपड़े उड़ कर बाजू वाली काकी के छत पर चले जाऐंगे जो फिर कभी वापस नहीं मिलेंगे...”
औैर हाँ...तू मत उड़ जाना
माँ की ऐसी अटपटी बातें सुनकर सब हँस पड़े पर मेरे होठों की हल्की-सी मुस्कान भी चली गई।
ये बात हमेशा वो बोला करता था!!!
खैर...
छत पर गयी कपड़े उठाए।
जब दुबारा गयी तो देखा बिल्कुल शांत वातावरण था, ठंडी हवाएँ बह रही थी
और उस फिजाओं में मैं खोयी हुई पता ही नहीं चला कब शाम से रात होने का कार्यक्रम चालू हो गया।
अचानक उस हवा के झोके से मेरी यादों की अलमारी खुल गयी...आँखें बंद हुई और उसी दुनिया में खो गयी जहाँ से अभी तक निकली नहीं थी।
याद आयी वो रात जब हम चुपके से
छत पर अकेले आधी रात को हाथ में चाय की प्याली ले उन चंद खुबसूरत लम्हों को सुकून से जी रहे थे, चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कान, ना कोई गम ना कोई खौफ बस प्यार का एहसास और
मन में बस एक ही बात चल रही थी
काश... काश ये लम्हा थहर जाए,
इस वक्त के जाने का वक्त ही ना आए,
जैसे बाँध के रख लूँ उस पल को अपने दुप्पटे में और रौब से कहूँ...मेरी मर्जी के बगैर कहीं मत जाना।
खुद से इतनी बातें करने के बाद आखिरकार हमारे बात करने की बारी आई।
एक-दूसरे की तरफ देखा और साथ में एक ही बात हम दोनों ने कही,
“चाय पी लो ठंडी हो रही हैं।”
और दोनों हँसने लगे फिर अचानक उसने कहा, कुछ कहो।
तुम कहो...
नहीं तुम कहो...
तुम कुछ कहो ना...
अरे बाबा! तुम कुछ कहो ना...
ऐसी बेतुकी बातों में रात तो गुजर गयी
पर आँखों ही आँखों में उस रात हमने सबसे ज्यादा बात की थी,
कुछ वादें, कुछ कसमें भी खायी थी।
मैंने उसके हाथ को अपने हाथ पर रखा और पूछ ही लिया....
सुनो! कभी छोड़ कर नहीं जाओगे ना??
उसने मेरी तरफ देखा थोड़ा मुस्कुराया और कहा, “हट पगली, कभी भी नहीं।”
और फिर क्या...दिल में मानो सितार बज रहें हो और सुकून-सा एहसास।
एक दूसरे को कस कर गले लगाया।
ऐसा लगा जैसे पुरी दुनिया मेरी बाहों में हो और दिल से एक आवाज आयी,
“अब और कुछ नहीं चाहिए!!!”
ऐसा लगा जैसे किस्मत को अपनी मुठ्ठी में भर लिया हो...अब हम कभी अलग नहीं होंगे।
पर किसे पता था कि ये हमारे साथ की आखिरी रात हैं......।।।
हाथों में हाथ डाल, आँखें बंद कर हम अपने आशियाने के सपने बुन रहे थे।
इतने में ही एक आवाज आयी
कपड़े उठाने गयी हो या बनाने??
आँसुओं से भरी आँखें खुली और यादों की अलमारी बंद हुई।
लंबी साँस भरी और एक ही बात निकली,
अच्छा हुआ जो आगे का याद नहीं कर पायी अपने ही जख्म को क्यूँ कुरेदना।।।
माँ आई.........!!!!
कितना अजीब है ना पुरी दुनिया की खुशियाँ हमारे पास होते हुए भी उस एक इंसान के लिए दिल उम्र भर तड़पता रहता हैं जो कभी नहीं आ सकता।।।
6 Comments
Increadiblly it's an epic🔥💯
ReplyDeleteThank you❤
DeleteWow yaar..... Bahut khoob!!!!!
ReplyDeleteThank you❤
DeleteBahut khoob 👍👍
ReplyDeleteShukriya 💖🌷
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